जिंदगी की कहानियां - मेरी मां Rama Sharma Manavi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी की कहानियां - मेरी मां

हर जिंदगी में सुख-दुःख, प्रेम घृणा, द्वेष-दया इत्यादि समस्त भावों से परिपूर्ण अनगिनत कहानियां सन्निहित होती हैं, जो वृहद ग्रन्थ का रूप ले सकती हैं।आसपास के जीवन की कहानियों को शब्दों में पिरोने की इच्छा काफ़ी समय से थी,पर मैं कथाकार नहीं, मात्र एक गृहणी हूं।
सबसे
पहले कथा मेरी माँ की।
हम छह भाई-बहनों की मां।मात्र तीन वर्ष की आयु में नानी के स्वर्गवाशी होने के कारण विद्यालय का मुुंह भी न देखने के बावजूद स्वाध्याय से हिन्दी पढ़ना-लिखना सीख लिया था उन्होंने।तीन भाई दो बहनों के मध्य चौथे स्थान की मेरी माँ, 9-10 वर्ष की आयु में ही मेरी माँ ने घर सम्भाल लिया था।उस समय विवाह छोटी उम्र में ही हो जाते थे, अतः उनका विवाह 16 वर्ष की आयु में पिता जी के साथ सम्पन्न हो गया।अगले साल मैंं उनकी गोद में आ गई।आगामी बारह वर्षो में वे पाँच और सन्तानों की माता बन गईंं।हम सबकी परवरिश मेंं वे पूर्णतया व्यस्त हो गईं।
मेंरे पिता जी सरकारी विभाग में एक अच्छे पद पर कार्यरत थे, पैसा अत्यधिक तो नहीं था मेंरे माता-पिता ने हम सभी भाई बहनों को उच्च शिक्षा दिलाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखा।मैं एवम मेंंरी छोटी बहन चिकित्सक हैं,दोनों भाई एवं एक बहन इनजिनियर तथा एक बहन केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापिका।
जीवन की गाड़ी हिचकोले खाती आगे बढ़ती रही।समयानुसार तीन बहन एवं एक भाई का विवाह सम्पन्न हो गया।समय का पता नहीं कब कौन सा करवट ले ले।हमारे जीवन में दुर्भाग्य ने प्रवेश किया।मात्र पचीस वर्ष की आयु में दूसरा भाई दुर्घटना ग्रस्त होकर अल्पायु में ही काल कवलित हो गया और हम सब अथाह दुख के सागर में डूब गए। अभी इस कष्ट से उबर भी नहीं पाए थे कि एक वर्ष बाद ही पिता जी मात्र एक सप्ताह की बीमारी में स्वर्ग सिधार गए। उसपर दुर्भाग्य यह कि केवल 10 दिन पूर्व ही बड़ा भाई ऑफिस के कार्य हेतु दो माह के लिए विदेश गया हुआ था, उसे वापस आने की प्रक्रिया पूर्ण करने में कम से कम तीन दिन लगने थे। बीमारी से मृत्यु के कारण मृत शरीर को अधिक समय तक रखना उचित नहीं था फिर वाराणसी में चिकित्सा हेतु ले जााने के कारण सभी रिश्तदारों का विचार था कि यहीं दाह संस्कार कर दिया जाय।मैं तो जैसे तैसे आ गई परन्तु तीसरे स्थान की बहन तो मात्र पचीस दिन पूर्व बेटे को जन्म देेेने के कारण पिता के अंतिम दर्शन भी न कर सकी।पिता जी को बेटे के हाथ से अग्नि भी नसीब नहीं हो सका।। विधि की
विडंबना भी अजीब है। तीन दिन बाद भाई आया। तरहवीं के उपरांत भाई आपने परिवार के साथ अपने कार्यस्थल पर वापस लौट गया।
रोज एक माह तक दीपक जलानेे, मायके पावँ फेरने एवं गंगा स्नान के उपरांत ही मां घर छोड़कर कहीं जा सकती थीं।पन्द्रह दिन और रुुककर मैं भी अपने घर वापस आ गई वहीं पास में रहने वाले पिता जी के एक मित्र के रिश्तेदार दो विद्य्यार्थियों को एक कमरे में रखकर, मां को उनके संरक्षण में छोड़कर।बाद में भी मां अपनी यादों को छोड़कर भाई के पास जाने को तैयार नहीं हुईं।बीच बीच में हम बहनें समय निकेलकर मां से मिलने आते रहते थे।
एक वर्ष बाद भाई जिद करके मां को अपने पास ले गया।भाई अच्छे पद पर कार्यरत था।खाना बनाने से लेेेकर सभी गृह कार्य के लिए भाई के यहां सहाायिकाएं थीं, परन्तु पता नहीं क्या दुुुराग्रह था मां से उसकी पत्नी को,जबकि मां एक अत्यंत शान्त प्रकृति की महिला हैं।अपने बच्चों को भी मां के निकट नहीं जाने देती थी, हालांकि भाई मां का यथासम्भव ध्यान रखने का प्रयास करता था क्योंकि उसे अपनी पत्नी के व्यवहार का पूर्ण भान था।
मां नहीं चाहती थीं कि उसका गृहस्थ जीवन अशांंत हो। एक बेटे को तो वे वैसे ही खो चुकी थीं, अतः बेेेटे को समझा बुझा कर वापस लौट आईं।ये तो अच्छा था कि अवकाश प्राप्ति के बाद पिता जी ने घर बना लिया था।उन्होंने छोटे बेटे को ध्यान में रखकर मकान बनवाया था किंतु हाय री किस्मत वे दोनों ही उसका उपभोग न कर सके।
प्रयाप्त पेेंशन मिलनेे के कारण अर्थाभाव तो नहीं था परंतु उनके जीवन में गहन एकाकीपन था।कुछ हम बहनों के प्रयास से,शेष अपने साहस से मां ने अपने अकेलेपन को अभिशाप नहीं बनने दिया, बल्कि उस एकांत को सुुकूँ भरे जीवन में परिवर्तित कर लिया।
सुबह उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर एक कप चाय बना अपने घर के छोटे से बगीचे के पास रंग बिरंगे फूलों को निहारते हुए, पक्षियों के सुमधुर कलरव को सुुुनते पीती हैं। फिर आधा घन्टा टहलती हैं।ततपश्चात पौधों ,गमलों की सिचाई करती हैं।9 बजे अंदर जाकर नाश्ता बना खाकर पुनः बाहर आकर पेपर पढ़ती हैं। फिर अपने सभी बच्चों से फोन पर वार्तालाप करतीं हैं।12 बजे घर में आकर स्नान-पूूजा कर। खाना बनाती हैं, खाती हैं फिर दोपहर में 2-3 घण्टे आराम करती हैं।साायं 6 बजेे उठकर फल खाती हैं एवं10-11 बजेे तक टीवी पर धारावाहिक-समाचार देखते हुए खाना,औषधि खाकर सोने चली जाती हैं।बीच बीच में हम बच्चे मिलने आते रहते हैं एवं उनके बैंक इत्यादि के आवश्यक कार्य सम्पन्न कर देते हैं।
जीवन में सदैव अनुकूूूलन होना चाहिये, यही प्रसन्नता का रहस्य है।